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साधना के शिखर पुरूष आचार्य श्री रामदयाल जी महाराज

नगाधिराज हिमालय से ले कर कन्याकुमारी तक विस्तृत देवभूमि भारत के विशाल और विमल वक्ष स्थल पर सृष्टि के उषाकाल से ही अनेक महापुरूषों और तपसाधकों ने अवतरण ले कर शस्य शयामला के गुण्-गौरव में अभिवृद्वि की है। आज से करीब 45 वर्ष पूर्व एसे ही एक दिव्य नक्षत्र ने इस भूमि पर अवतरण लिया जो आज अपने ज्ञानालोक से ना केवल भटके हुए मानवों को राह दिखा रहा है, वरन् अनेक कुरितियों और विकृतियों के जाल में उलझे समाज में जागृति व चेतना का शंखनाद भी फूंक रहा है। वह प्रज्ञा पुरूष है, अन्तर्राष्ट्रीय रामस्नेही सम्प्रदाय के 14 वें प्रधान आचार्य महाप्रभु स्वामी रामदयाल जी महाराज जिनके आचार्यत्व में 2 अप्रेल से 6 अप्रेल तक सम्प्रदाय के प्रवतर्क महाप्रभु स्वामी रामचरण जी महाराज का द्विशाताब्दी समारोह मनाया गया।
युगदृष्टा स्व. रामचरण जी महाराज ने जिस साहस,कल्प,आत्मशाकित के साथ आत्मोत्थान के शिखर पर अपने चरण चिन्ह अंकित किये, ठीक उन्ही के पदों का अनुसरण करते हुए आचार्य महाप्रभु स्वामी रामदयाल जी महाराज भी साधना के क्षैत्र में गतिशील है। कौन जानता था कि मध्य प्रदेश के इन्दौर नगर में भवानी राम के आंगन में माता रामकुंवर बाई की कुक्षि से 26 सितम्बर 1956 को जन्म लेने वाला यह बालक अपनी प्रखर मेधा व अलौककि ज्ञान बल से रामस्नेही संप्रदाय के आचार्य पद को सुशोभित करेगा।
जन्म के समय से ही माता- पिता द्वारा घूंटी के साथ दिये गये संस्कारों के द्वारा बालमन पर वह प्रभाव डाला कि शुरू से ही साधु सन्तों की संगत में आनन्द की अनुभ्ति होने लगी।खाने पीने और शरारत करने की उम्र में ही आप आध्यात्मिकता के रंग में रंगने लगे। जीवन की भंगुरता और नश्वरता की जैसे आपको पहचान हो गई। घर परिवार रिश्ते- नाते बेनामी और झूठे मानकर आप मात्र 12 वर्ष की अल्पवय में घर-बार छोड़कर जीवन के शाश्वत आनन्द की खोज में निकल पड़े। यहीं से वैराग्य का बीज इनके मन में अंकुरित होने लगा। अपनी जन्म भुमि इन्दौर को छोड़कर थोड़े दिन-उधर विचरने के बाद आप चित्तौड़ की धरा पर पधारे जहाँ आपका सम्पर्क संम्प्रदाय के तपस्वी व यशास्वी सन्त श्री भगतराम जी महाराज से हुआ। यहीं से प्रारम्भ होती है आपकी शिखर यात्रा, जिसमें आप ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। संत श्री भगतराम ने फाल्गुन कृष्णा त्रयोदशी संवत 2028 के दिन आपको अपना शिष्य घोषित किया। वैराग्य अंगीकार करने के बाद आपका अधिकांश समय जप तप , राम नाम- सुमिरन स्वाघ्याय में व्यतीत होने लगा। ध्यान एवं संयम व तप के अभ्यास सहिष्णुता ,निष्ठा एकाग्रता, कर्मठता व अनुशासन जैसे अनेक गुण आपके स्वभाव का बड़े सहज रूप में अभिन्न अंग बनते चले गये। जिनके बलबूते पर आपका व्यक्तित्व इतना विराट होता चला गया कि मात्र 37 वर्ष की उम्र में ही आप संप्रदाय के आचार्य पद पर विराजमान हुए।
आचार्य प्रवर एक कुशल संगठक तो है ही, साथ ही आप में समय की नब्ज को पहचान कर तदनुरूप निर्णय लेने की विलक्षण क्षमता भी है। यही कारण है कि रामस्नेही संप्रदाय को ना केवल पूरे देश ही अपितु संपूर्ण विश्व में व्यापक पैमाने पर मान्यता मिली है। एक जानकारी के अनुसार रामस्नेही संप्रदाय के इस समय देश में लगभग 550 संत है। और अनुयायियों की संख्यां करोड़ों में है। आचार्य प्रवर क्रांतिकारी विचारों के धनी है।
आपकी प्रवचन शैली सहज, सरल, और अन्तर्मन को आसानी से छूने वाली है जिसमें एक ओर जहां जीवन की वास्तवकिता का दिव्य दशर्न होता है वहीं दूसरी ओर रूढियों, अंध विश्वासों और सामाजिक विकृतियों के खिलाफ सिँह गर्जना भी सुनाई पड़ती है। यही कारण है कि आप केवल एक परम्परा के प्रतिनिधि संत के रूप में नहीं बल्कि राष्ट्रीय कांतिकारी, तारनहार एवं करूणानिधि के रूप में उभरकर लोकप्रिय हुए है ।
देश की मूल संस्कृत भाषा के साथ लगातार हो रहे सौतेले व्यवहार ने भी आपको काफी आहत किया है आप द्वारा संस्कृत विद्यालय की स्थापना करने के पीछे भी मूलत: यही भावना रही है।कि आने वाली पीढी इस भाषा को फिर से अपने प्राचीन गौरवशाली स्थान दिलाने के लिये एकजुट होकर प्रयास कर सके। पाश्चात्य संस्कृति और सभ्यता की अंधानुकरण प्रवृत्ति के चलते देश में जिस प्रकार का वैचारिक प्रदूषण फैल रहा है, आचार्य श्री का मन इससे अत्यधिक व्यथित है। इसलिये पूरे देश में भ्रमण कर लोगों को स्वाभिमान और स्वावलम्बन के साथ जीने की प्रेरणा देते है। आपकी प्रेरणा का ही परीणाम है कि अनेक स्थानों पर युवाओं ने दुर्व्यसनों से बचने का संकल्प लिया है। यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भौतिक तृष्णाओं की इच्छापूर्ति के इस अंधे दौर में आचार्य प्रवर संयम साधना में स्थिरप्रज्ञ बनकर जिस प्रभावोत्पादकता से धार्मिक संस्कारों का निर्माण कर रहे है, वह अनुकरणीय है।
पिछले दिनों प्रयाग में आयोजित कुंभ के मेले में आपको “जगदगुरू” की उपाधि से अलंकृत किया गया । आपके द्वारा भीलवाड़ा में विशाल श्री रामस्नेही चिकित्सालय का भी निर्माण कराया गया है।
रामनिवास-धाम(शाहपुरा) का निर्माण : एक दृष्टि में

स्वामी रामचरण जी ने वि सं 1855 को अपना शरीर त्यागा । स्वामी जी महाराज की तेरहवीं की समाप्ति पर राजा अमर सिंह जी तथा समस्त रामस्नेही एवं जिज्ञासु भक्तजनों ने मिलकर गुरुधाम बनाने का विचार किया। और स्वामी श्री रामजन जी के सन्मुख निवेदन किया। आचार्य श्री ने स्वीकृती प्रदान कर दी। स्वामी जी का अन्त्येष्टि संस्कार जिस स्थान पर हुआ,उसी स्थान पर विशाल रामद्वारे का निर्माण शुरु हुआ। सभी भक्तजनों ने भेंट राशि एकत्रित कर अनुभवी कारीगर जरुर खां व कुशाल खां को बुलाकर निर्माण कार्य शुरु कर दिया। निर्माण कार्य के लिये चूना पत्थर ईंटे दूर से मंगवाना था। इसके लिये विचार चल रहा था। तब एक सन्त को रात्रि में स्व्प्न आया कि पत्थर दूर से मंगवाने की आवश्यकता नहीं, पास ही कांटी नामक ग्राम है,उसकी सीमा में उत्तर की तरफ़ खुदा लो । इसी स्व्प्न के आधार पर उस स्थान पर खुदाई कराने से यह सुन्दर पत्थर निकला। जिससे रामनिवास धाम का निर्माण हुआ। इसका दरवाजा पूर्व की तरफ़ रखा गया है जिसको सूरजपोल कहते है। इसके भीतर दोनो तरफ़ नाल है, दोनो सवा छ्ह फ़ीट चौड़ी है एवं जिनमे तेरह- तेरह सीढीयां है।
नीचे एक मंझिल का कार्य पूरा होने पर ऊपर बारहदरी(सभा-स्थल) का कार्य प्रारंभ किया गया। जिसमें कुराईदार स्तम्भ लगाये गये। इस बारहदरी में बारह खम्भे व बारह ही दरवाजे है। इसके एक पश्चिमी खम्भे पर निम्न प्रकार से शिलालेख है।–

रामचरन ब्रह्म पद मिले, निवृति कर गये दास।
रामस्नेहा सबन मिले, किनों रामनिवास॥
संवत अठारा सौ परै, गये पचावन और।
चैत बदी 5 मंगला, बनी भजन हित ठौर॥
इस बारहदरी में कोई मुर्ति चित्र व पादुका आदि कुछ भी नहीं है। बारहदरी के बीचों-बीच राम-राम व कुछ साखियाँ लिखी है। इस बारहदरी के तीन परिक्रमा है। दो परीक्रमा सहित बारहदरी में एक सौ आठ खम्भे है और चौरासी दरवाजे है। तीसरी परिक्रमा फ़िरणी पर है, जिसके चारों ओर कठेड़ा लगा है। सूरजपोल पर अतिसुन्दर शोभायुक्त झरोखा बना है जिसकी तीन घुमटियों पर पाँच कलश है। इसके दोनो ओर काले रंग के पत्थर की दो छतरियाँ इन छतरियों के पास ही उत्तर व दक्षिण को दो कबाणिये तीन तीन कलशों के सफ़ेद पत्थर के बने हुए अतिसुन्दर दृश्य दिखाई देते है।
इस प्रकार दूसरी मंझिल का कार्य पूरा होने पर तीसरे खण्ड का कार्य प्रारंभ हुआ। बारहदरी के चौतरफ़ तीसरी फ़िरणी की दीवारों मे छाजे लगे हुए है, ऊपर बीचों-बीच में चत्र महल बनाया गया है। जिसमें 25 घुमटियों पर 47 कलश है। जिसमे 124 खम्भे है। सात प्रकार के सात झरोखे बनाये गये है। चारों खूँटों पर चार छतरियाँ है। इस पर चत्र महल का चौथा खण्ड और बनाया गया है। इन चार खण्डों का दृश्य ऐसा प्रतीत होता है मानो जल में कोई जहाज तैर रहा हो। इसमें कांच का कार्य किया गया है। बारहदरी में सतसंग, प्रवचन, अखण्ड राम-भजन होता है। इसी बारहदरी में स्वामी श्री रामचरण जी के शिष्यों की सूची भी है।
इस प्रकार से निर्मित बारहदरी में आचार्य श्री जी की गादी स्थापित है। इस गादी पर बैठकर अन्तरराष्ट्रीय रामस्नेही सम्प्रदाय के पीठाधीश्वर भक्तों को सम्बोधित करतें है। आचार्य श्री की अनुपस्थिती में मुख्य गादी रिक्त रहती है। परन्तु इसके आस-पास सन्त अवश्य रहते है। मुख्य गादी को सुनसान नहीं छोड़ा जाता है। श्वेत वस्त्रों से निर्मित यह मुख्य गादीसम्प्रदाय में आदर का प्रमुख केन्द्र मानी जाती है।


आचार्य श्री निवास कक्ष –
आचार्य श्री के निवास हेतु रामद्वारा में एक पृथक से महल है जिसमे आचार्य श्री निवास करतें है। यह भवन इस तरह से बनवाया गया है कि आचार्य श्री के एकान्तवास में किसी प्रकार का व्यवधान ना हो।
सरस्वती भण्डार-
इस भण्डार गृह में रामस्नेही सम्प्रदाय के सन्तों की अनुभव वाणियों के संकलन संग्रहित है। इसी भण्डार से शिष्यों को गुटके प्रदान किये जाते है। सरस्वती भण्डार को इस धर्म सम्प्रदाय की आत्मा कहा जा सकता है। सम्प्रदाय संबंधित सभी प्रकार के लिखित आलेख इस भण्डार में सुरक्षित रखे जाते है।
मुख्य भण्डार-
धाम में एक मुख्य भण्डार की व्यवस्था है। इस भण्डार में खाद्य सामग्री एवं वस्त्र आदि रखे जाते है। बाहर से आने वाले सन्तों व भक्तों के खाने पीने का प्रबन्ध यहीं से किया जाता है।
समाधि स्तम्भ जी-
यह स्थान बारहदरी के ठीक नीचे समाधि के मध्य में स्थित है। यहाँ एक अष्टकोणीय स्तम्भ बना हुआ है जो ऊपर बारहदरी से सटा हुआ है। देखने पर ऐसा लगता है कि बारहदरी इसी पर स्थित है। मनौती माँगने वाले इसकी जाली या द्वार पर लच्छा बाँध देते है।मनोकामना पूर्ण होने पर रामनिवास-धाम के बाहर प्रसाद तौल कर वितरित करने की परम्परा चली आ रही है।
हरि विलास-
यह धाम का आकर्षण है। इसमे आचार्य श्री अपनी बैठक करते है। इसका निर्माण पाँचवें आचार्य स्वामी श्री हरि दास जी महाराज द्वारा कराये जाने से “हरि विलास” के नाम से जानी जाती है।
हिम्मत विलास-
रामस्नेही सम्प्रदाय के षष्ठम आचार्य स्वामी श्री हिम्मत राम जी महाराज जिस कक्ष का उपयोग अपने लिये करते थे, उसका नाम “हिम्मत विलास” रखा गया है। यह कक्ष भी दर्शनीय है।
हवा महल-
रामनिवास-धाम मे हवा महल का नाम उस कक्ष को दिया गया है जिसमे चारों ओर से हवा आने की व्यवस्था की गयी है।ग्रीष्म ॠतु मे इसका विशेष उपयोग किया जाता है।
जग निवास-
दसवें आचार्य स्वामी श्री जगराम दास जी महाराज द्वारा इसका निर्माण कराया गया था। वे इसी में निवास करते थे। इसलिये इसका नाम जग निवास रखा गया। यह भी अपने आप मे अनूठा है।
बादल महल-
अन्य प्रमुख आकर्षणों में बादल महल भी धाम का एक दर्शनीय अंग है, छह चौकियों पर निर्मित यह स्थान साधना के लिये उपयुक्त है।
राम झरोखा-
आचार्य स्वामी श्री दयाराम जी महाराज द्वारा इसका निर्माण कराया गया था।
चत्र महल- बारहदरी से ऊपर आचार्य श्री चत्र दास जी महाराज द्वारा इसका निर्माण कराया गया था।
न्याय मन्दिर-
यह राजा रणजीत सिंह जी की छ्त्री है, यहाँ आचार्य श्री न्याय गादी पर बिराजकर अशोभनीय व अमर्यादित आचरण करने वाले सन्तों का न्याय करते थे।
लाल चौक-

गंगापुर के स्वर्गीय दादा गुरू श्री साध महाराज, श्री कार्यराम जी व पूज्य गुरु श्री उम्मेद राम जी भण्डारी की पुण्य स्मृति में लाल चौक की छत का निर्माण करवाया था। आद्याचार्य श्री रामचरण जी महाराज का साधना स्थल- रामनिवास धाम के समीप उत्तर दिशा में यह राजा भारत सिंह जी की छ्त्री आज भी स्थित है, जहाँ बैठकर स्वामी श्री रामचरण जी महाराज ने सर्वप्रथम अपनी साधना स्थली बनाई थी। इसी छ्त्री के चारों ओर घास के पड़त लगाकर स्वामी श्री ने इसी में निवास किया था। तेरहवें आचार्य श्री राम किशोर जी ने इसका जीर्णोद्वार करवाकर फ़र्शी, चिप्स, सीढीयोँ एवं द्वार आदि का निर्माण करवाया था।


रामस्नेही सम्प्रदाय के प्रमुख आचार्य
रामस्नेही सम्प्रदाय के प्रमुख आचार्य
1 आद्याचार्य श्री रामचरण दास-
जन्म- वि सं 1776 माघ शुक्ला 14, शनिवार।
जन्म स्थान- सौडो। जाति- वैश्य (विजयवर्गीय)
नख- कापड़या। दीक्षा- वि सं 1808 भादवा सुदी 7 ।
दीक्षा स्थान- दातड़ा(मेवाड़)
लीला विस्तार- वि सं 1855 बैसाख कृष्णा 5 (शाहपुरा)
2 महाराज श्री रामजन-
जन्म- वि सं 1795 जन्म स्थान- सिरस्यो ।
जाति- वैश्य (माहेश्वरी-लढ़ा) दीक्षा- वि सं 1824
गादी- वि सं 1855
लीला विस्तार- वि सं 1867 आषाढ़ कृष्णा 11 बुधवार ।
3 महाराज श्री दुल्हेराम-
जन्म- वि सं 1813 ज्येष्ठ शुक्ला 11
जन्म स्थान- जयपुर । जाति- वैश्य (खण्डेलवाल)
वैराग्य धारण- वि सं 1833 गुजरात प्रवास- वि सं 1837
गादी- वि सं 1867
लीला विस्तार- वि सं 1881 आषाढ़ कृष्णा 10 मंगलवार।
4 महाराज श्री चत्रदास-
जन्म- वि सं 1809 जन्म स्थान- आलोरी ।
जाति- काछेला चारण। दीक्षा- वि सं 1821
गादी- वि सं 1881
लीला विस्तार- वि सं 1887 माघ कृष्णा 5 ।
5 महाराज श्री नारायण दास-
जन्म- वि सं 1853 जन्म स्थान- भुंडैल।
दीक्षा- वि सं 1887 गादी- वि सं 1887
लीला विस्तार- वि सं 1905 मगसर कृष्णा 9 ।
6 महाराज श्री हरिदास-
जन्म- वि सं 1860 जन्म स्थान- आगूंचा(मेवाड़) ।
दीक्षा- वि सं 1872 गादी- वि सं 1905
लीला विस्तार- वि सं 1921 चैत्र शुक्ला 8 ।
7 महाराज श्री हिम्मत राम-
जन्म- वि सं 1883 अश्विन कृष्णा 14
जाति- मारु चारण जन्म स्थान- धानणी(सीकर) ।
दीक्षा- वि सं 1907 गादी- वि सं 1921
लीला विस्तार- वि सं 1947 चैत्र शुक्ला 9 ।
8 महाराज श्री दिलशुद्ध राम-
जन्म- वि सं 1910 जन्म स्थान- अभयपुर(मेवाड़) ।
दीक्षा- वि सं 1915 गादी- वि सं 1947
लीला विस्तार- वि सं 1953 आसोज सुदी 12 ।
9 महाराज श्री धर्म दास-
जन्म- वि सं 1906 कार्तिक कृष्णा 13
जन्म स्थान- पलोई । दीक्षा- वि सं 1918
गादी- वि सं 1953
लीला विस्तार- वि सं 1954 कार्तिक सुदी 5 शनिवार ।
10 महाराज श्री दयाराम-
जन्म- वि सं 1918
जन्म स्थान- सांगरिया(मेवाड़) । दीक्षा- वि सं 1929।
गादी- वि सं 1954
लीला विस्तार- वि सं 1962 आषाढ़ सुदी 4 गुरुवार।
11 महाराज श्री जगराम दास-
जन्म- वि सं 1907 भादवा सुदी 4
जन्म स्थान- इन्दराणी(बालोतरा) । जाति-राजपूत
दीक्षा- वि सं 1934 फ़ाल्गुन कृष्णा 7 ।
गादी- वि सं 1962 कार्तिक कृष्णा 5 ।
लीला विस्तार- वि सं 1967 चैत्र सुदी 13 ।
12 महाराज श्री निर्भय राम-
जन्म- वि सं 1943 चैत्र सुदी 13
जन्म स्थान- बररामो(मालवा) । जाति-चारण।
दीक्षा- वि सं 1955 चैत्र कृष्णा 5 ।
गादी- वि सं 1967 बैशाख कृष्णा 10 ।
लीला विस्तार- वि सं 2012 श्रावण सुदी 13 सोमवार।
13 महाराज श्री दर्शनराम-
जन्म- वि सं 1954
जन्म स्थान- गढ़वाड़ा(मेवाड़) । दीक्षा- वि सं 1961 आषाढ़ सुदी 11 ।
दीक्षा स्थान- उदयपुर गादी- वि सं 2012 कार्तिक कृष्णा 5 ।
आचार्य पद्त्याग- वि सं 2015 चैत्र कृष्णा 5 ।
लीला विस्तार- वि सं 2035 दिनांक 17/10/1978 ।
14 महाराज श्री रामकिशोर-
जन्म- वि सं 1976 चैत्र सुदी 13 शनिवार
जन्म स्थान- ढाबर(मारवाड़) । दीक्षा- वि सं 1983 मार्गशीष सुदी 11 ।
दीक्षा स्थान- शाहपुरा गादी- वि सं 2016 चैत्र सुदी 8 ।
लीला विस्तार- वि सं 2050 पोष कृष्णा 11 दिनांक 08/01/1994 ।
15 महाराज श्री रामदयाल-
जन्म- 26 सितम्बर 1956
जन्म स्थान- इन्दौर(मध्यप्रदेश) । दीक्षा- वि सं 2028 फ़ाल्गुन कृष्णा 13 ।

दीक्षा स्थान- चित्तौड़ गादी- 20 जनवरी 1994 ।
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